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17-Apr-2020

Energy : Geopathic Stress

  By Geopathic Stress in Hindi by Jayesh Kapadia

आप जहां सोते हो या काम करते हो क्या वह जगह आपके लिए सेहतमंद है?

 

हमारी सेहत पर जिस तरह सौर मंडल के विभिन्न ग्रहों और ऊर्जा का प्रभाव होता है वैसे ही जमीन के अंदर से आने वाली सकारात्मक एवं नकारात्मक ऊर्जा का परिणाम हमारे मन एवं शरीर पर होता है। हम जिस जगह काम करते हैं या कहे तो दिन में लगभग 4 - 6 से भी ज्यादा घंटा बिताते हैं तो इस क्षेत्र से निकलने वाली ऊर्जा हमें सबसे ज्यादा प्रभावित करती है।

 

जमीन के अंदर से निकलने वाली एक ऐसी ऊर्जा जिसे विज्ञान ने जियोपैथिक स्ट्रेस या भू - तनाव कहा है। जियोपैथिक लैटिन शब्द है। उसका मतलब जमीन से आनेवाली बीमारी है। यह नकारात्मक ऊर्जा हमारे शरीर के लिए हानिकारक है। हम में से बहुत लोगों को सेहत से जुड़ी शिकायत हमेशा ही रहती है। चाहे कितनी भी दवाई ले लो, सेहत का ख्याल रखो पर बीमारी खत्म नहीं होती। दवाई असर नहीं करती। सुबह नींद खुलने पर भी दिन भर सुस्ती ही बनी रहती है। थकान महसूस होती है। काम करने पर उत्साह नहीं रहता। एक अजीब सी मायूसी चिड़चिड़ापन हमें अनुभव करते हैं। यह आपके घर या ऑफिस या क्षेत्र पर जियोपैथिक स्ट्रेस या भू तनाव का प्रभाव होने का प्राथमिक लक्षण है।

 

हालांकि यह बात बहुत अचंभित करने वाली लगती है कि जमीन से आने वाली प्राकृतिक उर्जा हlनी कैसे पहुंचा सकती है ? हालांकि जियोपैथिक स्ट्रेस जमीन के अंदर बनने वाली पानी के घर्षण से उत्पन्न होती है। भू तनाव दोषपूर्ण चुंबकीय ग्रिड लाइने, खनिज जमा की एकाग्रता, भूमिगत दरारें, आधुनिक बांधकाम और कई कारण भी है।

 

व्हाउं पाओल, केथी बेचलर, डाक्टर हरर्टमन आदि वैज्ञानिकों ने जियोपैथिक स्ट्रेस जैसी नकारात्मक उर्जा के प्रभाव का संशोधन करके निष्कर्ष निकाला है कि यह ऊर्जा मनुष्य और पौधों पर रोग प्रतिबंध क्षमता पर बुरा असर करती है। बीमार व्यक्ति को ठीक करने में बाधक रूप है। यह ऊर्जा जमीन के 200 फीट अंदर से आ सकती है और चाहे आप 50वी मंजिल पर भी क्यों ना रहते हो यह आपके लिए हानिकारक साबित हो सकती है। यह नकारात्मक ऊर्जा को ब्लैक सिंड्रोम रेंज या कैंसर के नाम से भी पहचाना जाता है I

 

छोटे बच्चों का नींद में चलना, बिस्तर पर पेशाब करना, बिस्तर पर घूमना, जिन घरों में बिल्लियों का आना जाना है, मधुमक्खी पाए जाते हैं, बहु चीटियां दिखाई देती है, ज्यादा छत पर दिमक पाया जाता है वगैरे वगैरे लक्षण जियोपथक स्ट्रेस के माने जाते है।

 

वैश्विक आरोग्य ऑर्गनाइजेशन (W.H.O.) ने हाल ही में प्रकाशित किए समाचार पत्र में सीक बिल्डिंग सिंड्रोम इस संग्या का उपयोग किया गया है। इसका मतलब यही है कि ऐसी वस्तु जहां जियोपैथिक स्ट्रेस जैसी नकारात्मक ऊर्जा का प्रमाण अधिक है उस बिल्डिंग में कोई न कोई मानसिक समस्या होती रहती है।  जैसे काम में मन न लगना, बार-बार नौकरी बदलना इत्यादि समस्या हो सकती है। आपको हैरानी होगी कि ऑस्ट्रेया और जर्मनी में घर तथा स्कूल की इमारत बनाने की परंपरा 100 साल से भी अधिक जियोपैथिक स्ट्रेस एनओसी पर ही दी जाती है।

 

हमारे प्राचीन मंदिरों भी जिओपथिक स्ट्रेस पर बने हुए हैं ताकि मनुष्य जाति वहां बस नहीं सकती। चाइना में भी 400 से अधिक वर्षों से जियोपैथिक स्ट्रेस की जानकारी उपलब्ध है।

 

आज के वैज्ञानिक युग में यह जाना जाता है कि जियोपैथिक स्ट्रेस या भू तनाव से रक्तचाप, सिरदर्द थकान, तनाव ध्यान केंद्रित करने में परेशानी और गंभीर बीमारियों का सामना करना पड़ सकता है। अध्ययन से यह देखा गया है कि कैंसर से मरने वाले लगभग ८५% से अधिक रोगियों ने लंबे समय तक जियोपथिक  स्ट्रेस  से ग्रसित थे। डॉक्टर हाटमन द्वारा उनके 30 वर्षों के चिकित्सा अभ्यास के दौरान उन्होंने यह बात साबित कर दी था कि कैंसर ऐसा रोग है जो जियोपैथिक स्ट्रेस तनाव के कारण होता है।

 

लोगों को निर्मित पर्यावरण के भीतर भू भोतिकिय तनाव के अस्तित्व के बारे में पता नहीं होता है। मानव तो ठीक पर पौधों की उत्पादकता और मशीनरी ब्रेकडाउन जैसी समस्या भी जियोपैथिक स्ट्रेस क्षेत्र में पाई गई है।

 

अब तो भारतीय ग्रीन बिल्डिंग काउंसिल ने बिल्डिंग प्रोजेक्ट के लिए जियोपैथिक स्ट्रेस रेडिएशन को संबोधित करने के लिए इनोवेशन एवं डिजाइन प्रोसेस तहत क्रेडिट देने की शुरुआत की है। यह कम बीमारी दर, बीमारियों के प्रसार, शारीरिक तनाव संबंधी स्वास्थ्य पर सकारात्मक प्रभाव डालेगा।

 

आज के इस आधुनिक युग में हम यह जान सकते हैं कि जिस जगह हम काम कर रहते हैं, सोते हैं ज्यादा घंटों तक समय व्यतीत करते हैं वह हमारे लिए सेहतमंद है या नहीं। इस नकारात्मक उर्जा के प्रभाव से बचने के लिए वास्तु ऊर्जा परीक्षण करने में ही समझदारी है। एनर्जी वैलनेस और लोगों को स्वास्थ्य जीवन प्रदान करने के लिए कटिबद्ध है।